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धर्मेंद्र को जीते-जी मार डाला! शर्म मीडिया को मगर नहीं आती

धर्मेंद्र को जीते-जी मार डाला! शर्म मीडिया को मगर नहीं आती

 

 

 

अंततः नायक घर लौट आया. खलनायकों ने उसे मारने की बहुत कोशिश की. लेकिन नायक के जीवट के हाथों वे पिट गए. मगर ये गंभीर मसला है. हम कितने हड़बड़ाए हुए समाज हो गए हैं? या फिर यह हड़बड़ाहट भी स्वाभाविक नहीं है? 90 साल के धर्मेंद्र को मीडिया ने मार ही डाला था.

घर-परिवार की झिड़कियों के बाद भी तैयारी चलती रही कि धर्मेंद्र नहीं रहेंगे तो उनके शोक को किस तरह बेचा जाएगा.यह धर्मेंद्र को खो देने के दुख से ज़्यादा बड़ा इस दुख का कारोबार था जिसके लिए मीडिया धर्मेंद्र की फिल्मों से जुड़े नए-पुराने फुटेज जुटाता रहा. वैसे भी इन दिनों मीडिया में त्रासदी तमाशे की तरह चलती है. शोक बिल्कुल शोर के साथ मनाया जाता है- इस प्रतियोगिता के साथ कि सबसे पहले किसने ख़बर दी, किसने सबसे ज़्यादा गाने चलाए, किसने शोक मनाने वालों के मुंह में सबसे तेज़ी से माइक ठूंसा.

धर्मेंद्र को जीते-जी मार डाला! शर्म मीडिया को मगर नहीं आती

लेकिन क्या यह बस मीडिया का दोष है? क्या हम भी ऐसे समाज में नहीं बदल गए हैं जो रोज़ अतिशय प्रदर्शनप्रिय होता जा रहा है? सेल्फ़ी इन दिनों का सबसे बड़ा जुनून है- रील बनाना सबसे बड़ा शौक. प्रधानमंत्री से लेकर संतरी और सोशल मीडिया के सिपाही तक सेल्फ़ी लेने और रील बनाने के खेल में लगे हैं. न ख़ुद को देखने का अवकाश है न दूसरों को समझने का. शब्द अर्थ खो रहे हैं, अनुभव भाप की तरह उड़ जा रहा है, स्मृति में कुछ नहीं टिक रहा.

संवेदना मरे हुए अक्षरों में बदल गई है- सिकुड़ कर मुश्किल से तीन-चार अक्षरों में काम चलाती हुई. HBD और RIP इस दौर के सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द होते जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर खुशी और मातम दोनों इन्हीं दो अक्षर-युग्मों के छोर के बीच टिके रहते हैं. इसके अलावा जो सबसे ज़्यादा नज़र आता है, वह अधैर्य और क्रोध है.

किसी भी घटना पर सबसे तेज़ी से प्रतिक्रिया जताने की हड़बड़ी और किसी भी मामले में सबसे पहले निर्णय सुनाने का उत्साह सोशल मीडिया को बिल्कुल भावनाशून्य मायावी दानव में बदल डालता है. इस दानव का हंसना-रोना-कुछ कहना या चुप रहना सब बाज़ार के इशारों पर होता है. भोले-मासूम लोग समझते हैं कि वे अपना गुस्सा निकाल रहे हैं या अपना फैसला सुना रहे हैं- ये गुस्सा और फ़ैसला दोनों पूर्व निर्धारित होते हैं. यह एक ऐसा तंदूर है जिसमें नई आग पड़ती जाती है, धुआं निकलता जाता है और बाज़ार की रोटियां सिंकती जाती हैं.

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